Shiv tandav strotam in hindi शिव ताण्डव स्त्रोतम bhakti bhajan dharmkagyaan




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शिव ताण्डव, शिव जी को प्रसन्न करने के अनेक माध्यमो में से यह सबसे प्रबल और शक्ति शाली उक्ति है।
इसकी रचना  प्रकाण्ड विद्वान लंकाधिपति दशानन ने शिव जी को प्रसन्न और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये किया था।
पौराणीक कथा केअनुसार-    लंका पति रावण शिव जीका अनन्य भक्त था।और अपनी शक्ति के मद में चूर वह शिवजी को कैलाश सहित लंका लाना चाहता था।जिसकी इच्छा लेकर वह कैलाश पर्वत पर गया और सम्पूर्ण कैलाश पर्वत को अपनी भुजाओ में उठा लिया । जिससे महादेव क्रोधित होगये औरअपने पैर के अंगूठे से पर्वत
को दबा दिए ।और दशानन की भुजाये पर्वत के नीचे दब गई।और वह तीव्र दर्द से तड़पने लगा।
और उसके रुदन की आवाज से सभी दिशायें कापने  लगी।  दशानन के तीव्र रुदन ध्वनि के कारण महादेव ने लंकेश को रावण के नाम से संबोधित किया
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तीव्र दर्द से ब्याकुल रावण ने महान शिव तांडव स्त्रोतम की रचना की।
                              क्योंकि रावण परम शिव भक्त था । उसने साक्षात शिव जी के प्रत्यक्ष रूप और उनके गुणों का वर्णन किया। जिससे शिव प्रसन्न हुए और रावण को मुक्त किये और रावण को मनवांछित वरदान प्रदान करने केउपरांत बोले मुझे प्रसन्न करने के अनेक उपाय है।किन्तु मैं सबसे ज्यादा संतुष्ट तुम्हारे शिवताण्डव स्त्रोतम से हूँ।

  शिव ताण्डव स्त्रोतम की महिमा - रावण ने भी इसकी महानता का वर्णन करते हुए कहा है।
जो भी प्राणी इसका जाप करेगा वह संसार के सभी सुखों का भोग कर मुक्ति को प्रदान होगा।

          ।।शिव ताण्डव स्त्रोतम।।

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी,
विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि।
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके,
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम:।।



धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस्,
फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि,
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।

जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा,
कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे,
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।

ॐ नमः शिवायः
सदा शिवम् भजाम्यहम्
सदा शिवम् भजाम्यहम्
ॐ नमः शिवायः

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर,
प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक,
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः।।

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा,
निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम्।
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं,
महाकपालिसम्पदे शिरो जटालमस्तु नः।।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके।
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक,
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्त,
कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः,
कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः।।

ॐ...

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा,
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं,
गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे।।

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी,
रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं,
गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे।।

ॐ...

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस,
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल, ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः।।

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्,
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः,
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।।

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्,
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः,
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं,
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं,
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्.।

विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्.।
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्.।।

ॐ...


स्रोत-        https://youtu.be/RLv1Be0tCEE


 Lyrical support- balyvaas shivanand  bhai shree

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